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Sunday 15 April 2018

हस्त मैथुन व स्वप्न दोष से मुक्ति पाने का निश्चित तरीका

हस्त मैथुन व स्वप्न दोष से मुक्ति पाने का निश्चित तरीका

अभी कुछ दिनों पहले “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने शीघ्रपतन बीमारी के ऊपर एक आर्टिकल इस वेबसाइट पर प्रकाशित किया था जिसमें इस बीमारी के दो मुख्य कारण, हस्त मैथुन की गन्दी आदत व स्वप्न दोष की बीमारी को बताया गया था (masturbation, wet dream) |

इस आर्टिकल के पब्लिश होने के बाद से तो अचानक जैसे बाढ़ सी आ गयी ऐसे पीड़ित युवाओं की जिन्होंने “स्वयं बनें गोपाल” समूह से सम्पर्क करके अपनी दुविधा शेयर कि वे भी लाइफ के इसी दुखी फेज से गुजर रहें हैं मतलब हस्त मैथुन की सर्वनाश करने वाली आदत या स्वप्न दोष नाम के जिद्दी भूत से बहुत चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा पा रहें हैं जिसकी वजह से अब उनके शरीर का पूरा ओज तेज शक्ति मेधा आदि सब दिन ब दिन नष्ट होता जा रहा है और वे असमय बुढ़ापे की ओर बढ़ रहें हैं !


इसमें से कुछ युवाओं ने तो हमें बहुत ही चौकाने वाली बात बताई कि वे 13 – 14 साल की कच्ची उम्र से ही प्रतिदिन हस्त मैथुन कर रहें जिसकी वजह से उनकी शारीरिक ताकत में इतनी ज्यादा कमी आ गयी है कि मात्र 100 मीटर पैदल चलने में ही उनका शरीर थक के चूर हो जाता है तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता भी इतनी ज्यादा कमजोर हो गयी है कि आये दिन कोई ना कोई बीमारी उनके शरीर में लगी ही रहती है !

दुनिया को कोई भी समझदार आदमी ऐसा नहीं होगा जो यह नहीं जानता हो कि आखिर कोई भी किशोर या युवा हस्तमैथुन की गन्दी लत का शिकार क्यों और कैसे बन जाता है | बड़ा सीधा सा कारण है कि, इस अपरिपक्व और उत्साह से भरी उम्र में कोई किशोर या युवा दिन रात जब अपनी आँखों से (टेलीविजन, अखबार, मैगजींस, वेबसाइटस, या खुल्लमखुल्ला सड़को पर अश्लील कपड़े पहने हुए स्त्री पुरुषों) के माध्यम से अश्लील दृश्य देखता है या गंदे किस्म के यार दोस्तों के मुंह से अश्लील बातें किस्से जोक्स आदि सुनता है तो उसके मन में स्थित काम की दूषित भावना अक्सर बहुत बढ़ जाती है, जिसे शांत करने के लिए उसे अप्राकृतिक मैथुन अर्थात हस्त मैथुन का सहारा लेना पड़ता है या दिन रात गन्दे अश्लील ख्याल मन में सोचने की वजह से नीद में स्वप्न दोष अर्थात वीर्य स्खलन हो जाता है !

आईये सर्वप्रथम जानते हैं हस्तमैथुन की गंदी आदत और स्वप्नदोष की बीमारी से सम्बंधित विभिन्न चिकित्सीय, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्वपूर्ण पहलुओं को –

प्रसिद्ध चिकित्सक डॉक्टर केलाग का कहना हैं कि – “मेरी सम्मति में मानव-समाज को प्लेग, चेचक तथा इस प्रकार की अन्य व्याधियों एवं युद्ध से इतनी हानि नहीं पहुँचती जितनी हस्तमैथुन तथा इस प्रकार के अन्य घृणित महापातकों से पहुँचती है !


हस्त मैथुन की गन्दी आदत से मात्र कुछ मिनटों में अपने बेशकीमती धातु (अर्थात वीर्य) को बर्बाद करने वाले अधिकाँश युवक समझ नहीं पातें है कि खाए गए भोजन से वीर्य बनने की प्रक्रिया कितनी ज्यादा लम्बी, जटिल और दुरूह है | श्री आचार्य सुश्रुत ने इस बारे में लिखा है –

रसाद्रक्तं ततो मांसं मांसान्मेदः प्रजायते ! मेदस्यास्थिः ततो मज्जा मज्जाया: शुक्रसंभवः !!

अर्थात – भोजन पच कर पहले रस बनता है ! फिर पाँच दिन में उस रस से रक्त बनता है ! फिर उसके पाँच दिन बाद रक्त में से मांस, फिर उसके पांच – पांच दिन के अंतर पर मेद, फिर मेद से हड्डी, फिर हड्डी से मज्जा और मज्जा से अंत में वीर्य बनता है ! स्त्री में जो यह धातु बनती है उसे ‘रज’ कहते हैं ! इस प्रकार वीर्य बनने में करीब 30 दिन 4 घण्टे लग जाते हैं !

आधुनिक वैज्ञनिक भी कहते हैं कि, लगभग 32 किलोग्राम भोजन से, 700 ग्राम रक्त बनता है और 700 ग्राम रक्त से, लगभग 20 ग्राम वीर्य (Healthy Semen) बनता है बशर्ते कि शरीर स्वस्थ हो तो !

वीर्य की मनमाने तरीके से बर्बादी करने वालों को समझना चाहिए कि आखिर ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ है क्या ?

ब्रह्मचर्य का वास्तविक अर्थ है, सभी इन्द्रियों पर काबू पाना, जिसके बारे में एक रोचक सत्य प्रसंग है –

एक बार स्वामी दयानंद सरस्वती से किसी ने पूछा कि आपको कामदेव सताता है या नहीं ? उन्होंने उत्तर दिया, हाँ वह आता तो है मेरे पास भी, परन्तु उसे मेरे मकान (अर्थात मन) के बाहर ही खड़े रहना पड़ता है क्योंकि वह मुझे कभी भी खाली ही नहीं पाता है | स्वामी दयानंद (swami dayanand saraswati) कई तरह के सेवा कार्यों में इतने ज्यादा व्यस्त रहते थे कि उन्हें इन सब बातों के बारे में सोचने तक की फुर्सत नहीं थी | यही था उनके ब्रह्मचर्य का रहस्य !


वास्तव में विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) जैसी संस्थाएं चेचक, पोलियो, टी.बी., मलेरिया, प्लेग आदि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए हर साल करोड़ों डॉलर खर्च करती है परन्तु इन सबसे ज्यादा हानिकर रोग है वीर्यह्रास और निश्चित रूप से इसकी गंभीरता को हर बुद्धिमान व्यक्ति जरूर समझता है !

हस्त मैथुन की गन्दी आदत या स्वप्न दोष की बीमारी का इलाज जानने से पहले, यह अच्छे से जानने की जरूरत है कि आखिर जरूरत क्या है इन समस्याओं से पीछा छुडाने की !

हस्त मैथुन या स्वप्न दोष दोनों समस्याओं से वीर्य या रज का अप्राकृतिक रूप से नाश होता है | वीर्य या रज के नाश से होने वाले नुकसान को ठीक से समझने से पहले यह समझने की जरूरत है कि ब्रह्मचर्य के क्या महान फायदें हैं !

वास्तव में सारी दुनिया एक तरफ और एक ब्रह्मचारी का तेज दूसरी तरफ !

ब्रह्मचर्य (celibacy, celibate, continence) में इतना प्रचंड तेज होता है कि उसकी तुलना दुनिया का बड़ा से बड़ा हथियार भी नहीं कर सकता है | जिसका एक प्रसिद्ध उदाहरण थे श्री भीष्म पितामह, जिनका सामना करने की ताकत पांडवों में किसी में भी नहीं थी, इसलिए श्री कृष्ण को अर्जुन को भेजना पड़ा स्वयं भीष्म पितामह के पास यह जानने के लिए, आखिर वो मरेंगे कैसे ?

केवल शादी ना करने से ही कोई पूर्ण ब्रह्मचारी नहीं हो जाता है, बल्कि इसके लिए कुछ कठिन योग साधनाएं जैसे शक्तिचालिनी मुद्रा, कपालभाति, सिद्धासन आदि का बेहद लम्बा अभ्यास करना पड़ता है जिससे वीर्य की उर्ध्व गति (उर्ध्व रेतस) होती है और मानव धीरे धीरे महामानव में तब्दील होने लगता है !

आईये जानतें हैं ब्रह्मचर्य करने के फायदे और ना करने के नुकसान –

– वीर्य/रज के अत्यधिक ह्रास से शरीर की जीवनी शक्ति घट जाती है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने जाती है, आँखो की रोशनी कम हो जाती है, शारीरिक एवं मानसिक बल कमजोर हो जाता है, स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है !

– साधना द्वारा जो साधक अपने वीर्य को ऊर्ध्वगामी बनाकर, उर्ध्वरेता होकर योग साधना (Yoga Sadhna) में आगे बढ़ते हैं वे अनेक दिव्य सिद्धियों (Riddhi Siddhi) के मालिक बन जाते हैं, ऐसा ऊर्ध्वरेता पुरुष निश्चित भगवान का दर्शन प्राप्त कर सकतें है !

– ऑक्सीजन प्राणवायु है तो वीर्य जीवनी शक्ति है, अतः जिस तरह जीने के लिये ऑक्सीजन चाहिए वैसे ही ‘निरोग’ रहने के लिये स्वस्थ शुक्राणु | वीर्य इस शरीर रूपी नगर का राजा ही है | यह वीर्य रूपी राजा यदि पुष्ट हो अर्थात बलवान हो तो रोग रूपी शत्रु, शरीर रूपी नगर पर कभी आक्रमण नहीं कर पाते हैं !

– शास्त्रों में इस तथ्य के समर्थन में कहा गया है (Precious knowledge of Anicent most Hindu religious books Shastra or Granthas)-

आयुस्तेजोबलं वीर्य प्रज्ञाश्रीश्च महद्यशः। पुण्यं च प्रीतिमत्वं च हन्यतेऽब्रह्मचर्यया॥


अर्थात – आयु, तेज, बल, वीर्य, बुद्धि, लक्ष्मी, कीर्ति, पुण्य, प्रीति आदि सभी विभूतियाँ ब्रह्मचर्य न पालने पर पलायन कर जाती हैं।

– भगवान शंकर कहते हैं –

न तपस्तप इत्याहुर्ब्रह्मर्च्यं तपोत्तमम्। ऊर्ध्वरेता भवेद् यस्तु से देवो न तु मानुषः॥

अर्थात्- ब्रह्मचर्य से बढ़कर और कोई तप नहीं है ! ऊर्ध्वरेता (जिसका वीर्य मस्तिष्क द्वारा उच्च कार्यों में व्यय होता है) वह पुरुष मनुष्य नहीं प्रत्यक्ष देवता है !

– भगवान् शिव का वचन है –

सिद्धे बिन्दौ महादेवि, किं न सिद्धयति भूतते।

अर्थात – हे पार्वती, बिन्दु को सिद्ध कर लेने अर्थात ब्रह्मचर्य सिद्धि पर इस धरती की कोई सिद्धि ऐसी नहीं है जो प्राप्त न हो सके !

– भगवान् शिव (Bhagwan Shiva) का यह भी वचन है –

यस्य प्रसादान महिमा ममाप्येता दशो भवेत्।

अर्थात – “मेरी इतनी महिमा ब्रह्मचर्य पालन के कारण ही हुई है !

– अथर्ववेद की भी ऋचा है (Atharva veda hymns) –

रुजन् परिरुजन् मृणन् परिमृणन्। म्रोक्री मनीहा खनो निर्दाह आत्मदषिस्तन्द् षिः॥

अर्थात् – यह काम विकार मनुष्य को रोगी बनाने वाला है, बुरे-बुरे रोगों में फँसाता है ! यह मारने वाला बधिक है ! बहुत बुरी प्रकृति का बधिक है ! यह अपने शिकार को उलटा घसीटता है और बुद्धि का अपहरण कर लेता है ! शरीर में से आरोग्य और बल की जड़ें खोदकर फेंक देता है ! धातुओं को जलाता है ! आत्मा को मलीन करता है और तेज को चुरा लेता है !

– याज्ञवल्क्य संहिता में भी लिखा हुआ है (Vedic Rishi Muni written book Yagyavalkya sanhita) –

कर्मणा मनसा वाचा सर्वावस्थेसु सर्वथा। सर्वत्र मैथुन त्यागा ब्रह्मचर्य प्रचक्षते॥

अर्थात् – ब्रह्मचर्य वह है जिसमें क्रिया से ही नहीं, चिन्तन और कथन-श्रवण से भी कामुक प्रसंगों का परित्याग किया जाता है !


– आयुर्वेद के आदि ग्रन्थ ‘चरक संहिता’ में ब्रह्मचर्य को सांसारिक सुख का साधन ही नहीं, मोक्ष का दाता भी बताया गया है –

सत्तामुपासनं सम्यगसतां परिवर्जनम्। ब्रह्मचर्योपवासश्च नियमाश्च पृथग्विधाः।।

अर्थात – सज्जनों की सेवा, दुर्जनों का त्याग, ब्रह्मचर्य, उपवास, धर्मशास्त्र के नियमों का ज्ञान और अभ्यास आत्म साक्षात्कार का मार्ग है !

– वीर्य रूपी बिंदु के सम्बंध में पुराणों (Indian hindu dharma Puranas) में कहा गया है – मरणं बिंदु पातेन, जीवनं बिंदु धारणम | बिंदु का पतन मृत्यु तथा बिंदु को धारण करना ही जीवन है !

– स्वामी रामतीर्थ जी ने वीर्य के सम्बंध में कहा है (inspiring quotes of swami ram tirth)- वीर्य का संचय करने से यह सुषुम्ना नाडी द्वारा प्राण बनकर ऊपर चढता हुआ ज्ञान में परिवर्तित हो जाता है !

– प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. निकोलस कहते हैं – वीर्य को पानी की भाँति बहाने वाले आजकल के मूर्ख युवकों के शरीर को भयंकर रोग इस प्रकार घेर लेते हैं कि डॉक्टर की शरण में जाने पर भी उनका उद्धार नहीं होता और अंत में बड़ी कठिन विपत्तियों का सामना करने के बाद असमय ही उन अभागों का विनाश हो जाता है !

– प्राचीन समय में बड़े बुजुर्ग आशीरर्वाद देते समय कहते थे कि वीर्यवान बनो | वास्तव में वीर्य से ही वीर शब्द की उत्पति हुई है | वीर्य के अंदर कल्पना से भी परे शक्ति है | जब ब्रह्मचर्य के द्वारा वीर्य रक्षण किया जाता है तब व्यक्ति के अन्दर आश्चर्यजनक शक्ति उत्पन्न होती है | वीर्य की साधना करने वाला ऐसा अभ्यासी परमवीर हो जाता है और हमेशा विजयी रहता है !

– वैधक शास्त्र (Vaidhak Nayaya Shastra – medical Jurisprudence) में ब्रह्मचर्य को परम बल कहा गया है- “ब्रह्मचर्यं परं बलम”, इसीलिए मुहुर्त ज्योतिष (muhurat jyotish) में कहा जाता है की सम्भोग के पश्चात युद्ध व यात्रा नहीं करनी चाहिये अन्यथा हानि होती है।

– ब्रह्मचर्य से चेहरे का तेज बढता है | ब्रह्मचारी युवाओं के चेहरे पर हमेशा एक तेज व चमक बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति अपना एक अलग प्रभाव रखते है हजारों की भीड में इन्हे अलग से पहचाना जा सकता है !

– श्री गुरुगोविन्द सिंह जी (Shri Guru Gobind Singh) ने भी कहा है ‘‘इंद्रिय संयम करो, ब्रह्मचर्य पालो, इससे तुम बलवान रहोगे और चमकोगे”

– महर्षि सनत्सुजात ने महाराज धृतराष्ट (Mahabharat king Dhritarashtra) के समक्ष ब्रह्मचर्य के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा है –

नैतद् ब्रह्म त्वरमाणेन लभ्यं। यन्मां पृच्छन्नतिहृष्यतीयं। बुद्धौ विलीने मनसि प्रचिन्त्या। विद्या हि सा ब्रह्मचर्येण लभ्या।।

अर्थात – राजन् आपने मुझसे जो ब्रह्मविद्या के विषय में पूछा, वह त्वरायुक्त मानव को लभ्य नहीं है ! मन प्रलीन होने पर बुद्धि में वह विद्या अवभासित होती है ! ब्रह्मचर्य से ही उसको प्राप्त करना संभव है !

ब्रह्मचर्य की इतनी प्रचंड महिमा की वजह से ही परम आदरणीय हिन्दू धर्म में स्त्री पुरुषों को 25 वर्ष की उम्र तक अखंड ब्रम्हचर्य का पालन करने को कहा गया है मतलब 25 वर्ष की उम्र तक किसी भी तरीके से वीर्य या रज का नाश नहीं होना चाहिए चाहे वह हस्त मैथुन हो या पत्नी के साथ सहवास इसलिए हिन्दू धर्म में 25 वर्ष के बाद ही विवाह करने को कहा गया है क्योंकि 25 वर्ष की उम्र तक में अगर वीर्य या रज को शरीर में भली भांति पकने दिया जाए तो फिर शादी के बाद मैथुन करने से भी उतनी तेज बुढ़ापा नहीं आता है जितनी तेज 25 वर्ष से पहले ही वीर्य का नाश करने से आता है |
यह ठीक उसी तरह है कि जैसे कोई घर बनवाते समय पिलर्स (खम्भों) को पहले सूख कर एकदम मजबूत हो जाने के बाद ही उस पर छत बनवाते हैं, नहीं तो कमजोर और ताजे बने हुए पिलर्स पर अगर भारी भरकम छत बनवाकर उसका वजन दे दिया जाए तो पूरी उम्मीद की वे खम्भे हमेशा के लिए कमजोर हो जायेंगे जिससे वो पूरा घर असमय ही धराशायी हो सकता है अतः वीर्य/रज ही इसे पूरे मानव जीवन का प्रमुख आधार हैं और सिर्फ क्षणिक सुख के लिए इसकी बर्बादी करना मूर्खता नहीं बल्कि घोर मूर्खता है !


ब्रह्मचर्य के इन दुर्लभ फायदों को जानने के बाद गृहस्थ अर्थात शादीशुदा स्त्री पुरुषों (married couples) को भी अपनी निजी दिनचर्या में अधिक से अधिक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ताकि उनके शरीर का ओज तेज अधिक दिनों तक बरकरार रहे !

वास्तव में जिसने जीभ के स्वाद को नहीं जीता वह काम वासना को नहीं जीत सकता | मन में सदा यही भाव रखना चाहिए कि, हमें केवल शरीर के पोषण के लिए ही खाना हैं, ना कि स्वाद के लिए | जैसे पानी सिर्फ प्यास बुझाने के लिए ही पीते है, वैसे ही अन्न केवल भूख मिटाने के लिए ही खाना चाहिए, जबकि अधिकाँश माँ बाप बचपन से ही इसकी उलटी आदत डालते हैं जिसके तहत वे पोषण के लिए नहीं बल्कि अपना अंधा प्यार मोह दिखाने के लिए अपने बच्चों को बचपन से ही तरह तरह के स्वाद चखाकर उनकी आदत बिगाड़ देते हैं !

आधुनिक चिकित्सक डॉ. कैलॉग के अनुसार, पेटूपन सदाचार का शत्रु है, अधिक खा जाने से वीर्यनाश होना निश्चित है इसलिए जितनी भूख लगी हो, उससे कुछ कम ही खाना चाहिए !

अर्धरोगहरी निद्रा, सर्वरोगहरी क्षुधा अर्थात भली प्रकार से ली गई निद्रा से ही आधा रोग स्वतः ही नष्ट हो जाता है तथा व्रत उपवास का अवलंबन लेने से अर्थात भूख से थोड़ा कम खाने को सर्वरोगों का हरण करने वाला कहा गया है !

ब्रह्मचर्य पालन को सफल बनाने में सहायक कुछ सामन्य नियम –

– पत्नी, बहन व माँ आदि के अलावा किसी भी अन्य स्त्री के साथ अकेले में बैठकर बातचीत ना करें जब तक कि बहुत जरूरी ना हो !

– पराई स्त्री या पराये पुरुष के नेत्र, मुख इत्यादि अंगों को लगातार एक टक देखने से अवॉयड करना चाहिए !

– पराई स्त्री के साथ पुरुष को एक ही आसन पर आस पास बैठना यथासंभव अवॉयड करना चाहिए !

– भोजन सात्विक खाना चाहिये | मिर्च मसाले, खटाई, अधिक मीठा, गरम चीजें, माँस मदिरा आदि का सेवन त्याग देना चाहिये | नियत समय पर भूख से कुछ कम मात्रा में ताजा, सादा और सात्विक भोजन खूब चबा-चबा कर खाना चाहिए | पाप की कमाई या गलत बिजनेस से भी कमाई गए पैसे के अन्न से मन में दूषित भावना पैदा होती है | महीने में कम से कम दो दिन उपवास करना चाहिये ! इसके लिये अमावस्या पूर्णमासी या दोनों एकादशी अधिक उपयुक्त होती हैं !

– रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठ जाना चाहिये ! सूर्योदय से कम से कम एक घंटा पहले उठना सर्वोत्तम होता है !

– पेशाब करके तथा हाथ पैर मुंह धोकर, ईश्वर का चिन्तन करते हुए सोना चाहिए !

– जहाँ तक हो सके सिर्फ सदाचारी, ईश्वर भक्त, शुभ कार्य करने वाले तथा उत्तम विचार वाले पुरुषों का ही सत्संग करना चाहिये | बुरे लोगों की संगति तुरंत त्याग देना चाहिए !

– प्रातःकाल स्वच्छ वायु में नित्य कुछ किलोमीटर अवश्य पैदल घूमने जाना चाहिये।

– मन को हमेशा किसी कंस्ट्रकटिव काम में लगाये रहना चाहिये | बेकार बैठे रहना, आलस्य या प्रमाद में पड़े रहना घातक होता है | क्योंकि इस कलियुग में खाली दिमाग में शैतानी विचार तुरंत प्रवेश करने लगतें हैं !

– उत्तम कोटि की शिक्षा देने वाली पुस्तकों का ही स्वाध्याय करना चाहिये | कामोत्तेजक या अश्लील चित्रों वाली पुस्तकों को अपने पास भी नहीं आने देना चाहिये !

– रात को सोने से पहले लिंग को शीतल जल से धोना चाहिये। स्नान भी जहाँ तक हो सके ठंडे पानी से ही करना चाहिये।

– सुबह मोर्निग वाक (Morning walk) करने के मतलब यह नहीं है कि दिन भर सिर्फ कुर्सी पर ही बैठकर काम करते हुए या बिस्तर पर सोते हुए बिता देना चाहिए अर्थात हर एक दो घंटे में कम से कम 100 मीटर पैदल टहल लेना चाहिए और सुबह मोर्निग वाक के साथ अनिवार्य रूप से कुछ देर योग आसन, प्राणायाम, बंध (Yoga pranayama bandha dhyan or meditation) आदि का अभ्यास भी जरूर करना चाहिये !


– संसार की नश्वरता अर्थात अपनी मृत्यु (mortality or death) को कभी नहीं भूलना चाहिये !

– स्त्री को पुरुषों के शरीर में और पुरुषों को स्त्री के शरीर की वास्तविक सच्चाई को कभी नहीं भूलना चाहिए कि वास्तव में ऊपर से सुंदर दिखने वाला हर मानव सिर्फ मल, मूत्र, कफ, गैस, पसीना, कीचड़ आदि गन्दी चीजों का बर्तन मात्र ही है !

– महा मानवों, वीर पुरुषों, साधू संत ब्रह्मचारियों और कामवासना पर विजय प्राप्त कर चुके योगियों के चरित्र के बारे में ही रोज पढना और मनन करना चाहिये।

– जब इन्द्रियों का वेग प्रबल हो रहा हो अर्थात काम ज्यादा परेशान कर रहा हो तो किसी ना किसी काम में लग जाना चाहिये या अपने इष्ट भगवान, गुरु, माता, पिता आदि पूज्य जनों को याद करके मन में भावना करनी चाहिए कि कृपया मुझे काम से लड़ने की शक्ति प्रदान करें !

– प्रतिदिन रोज नियम से कुछ देर तक पूजा पाठ भजन ध्यान आदि करने से मन में स्थित गन्दी भावनाओं की काफी अच्छी सफाई होती है !

इन नियमों का कड़ाई से पालन करने से वे दुष्ट वृत्तियाँ शान्त होने लगती हैं जिनके कारण अनावश्यक कामोत्तेजना होती हैं, धीरे धीरे हृदय पवित्र होने लगता है और शुभ कर्मों की इच्छा उत्पन्न होती है, जिससे वीर्य रक्षा करना आसान हो जाता है !

आईये अब जानतें हैं हस्त मैथुन और स्वप्न दोष की बीमारी दूर करने का निश्चित तरीका –

हस्त मैथुन और स्वप्न दोष दोनों समस्या का सीधा सम्बन्ध है दुर्बल मानसिकता से, क्योंकि हस्त मैथुन की आदत या स्वप्नदोष से पीड़ित स्त्री/पुरुष इसकी हानि से भली भांति परिचित होतें हैं लेकिन लाख चाह कर भी वे इससे मुक्ति नहीं पा पातें हैं, ठीक उसी तरह जैसे किसी नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति उस नशे से दिल से मुक्ति पाना चाहता है पर बार बार अपने ही मन के सामने हार मान बैठता है और अंततः नशा नहीं छोड़ पाता है !

फिलहाल हम बात कर रहें हैं हस्त मैथुन व स्वप्न दोष की समस्या से जल्द से जल्द मुक्ति पाने की, ताकी इससे पीड़ित व्यक्ति भविष्य में कहीं वीर्य अल्पता और लिंग शिथिलता का गंभीर रोगी ना बन जाए क्योंकि जब कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक हस्त मैथुन करता है तो उसके लिंग में तनाव अर्थात कड़ापन आना बंद होने लगता है या बड़ी मुश्किल से आता है या किसी कड़ी कामोत्तेजक दवा का सेवन करने के बाद ही आ पाता है और वीर्य की मात्रा भी काफी कम हो जाती है, जिससे वैवाहिक जीवन बहुत दिनों तक सुखमय तरीके से नहीं चल पाता है !

हस्त मैथुन की गन्दी आदत या स्वप्नदोष की बीमारी की वजह से वीर्य या लिंग सम्बंधित जो भी दोष पैदा होतें हैं उन्हें एक अकेला पश्चिमोत्तानासन (pashchimottanasan) दूर करने में सक्षम है [ इसके बारे में पूर्व में हमने एक आर्टिकल विस्तार से प्रकाशित किया हुआ है जिसका शीर्षक है – “वीर्य स्तम्भन शक्ति (शीघ्र पतन) में बेहद आश्चर्यजनक लाभ पहुचाने वाला योगासन”, इस लेख को पढ़ने के लिए कृपया नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें ]

पर हम यहाँ बात कर रहें हैं उन तरीकों की जिससे हस्त मैथुन की गन्दी आदत या स्वप्नदोष की बीमारी से पूर्णतः मुक्ति मिल सके | इसके लिए दो काम करने होतें हैं, पहला काम एक विशेष योगासन व प्राणायाम करना होता है और दूसरा काम है, हनुमान जी के एक विशेष मन्त्र का जप करना !

वास्तव में हस्त मैथुन की गन्दी आदत छुड़ाने या स्वप्नदोष की बिमारी से मुक्ति पाने का कोई इलाज इसलिए एलोपैथी में नहीं है, क्योंकि यह दोनों बीमारियाँ सीधे मन से जुडी हुई हैं और मन को जबरदस्ती कण्ट्रोल करने का तरीका सिर्फ और सिर्फ परम आदरणीय धर्म हिन्दू के विशुद्ध विज्ञान परक ग्रन्थों में ही दिया गया है !

मन को कण्ट्रोल करने के लिए गोमुखासन (Gomukhasana Yoga) व अनुलोम विलोम प्राणायाम (Anulom vilom Pranayam) से बढ़कर कोई अन्य योगासन नहीं है | अनुलोम विलोम प्राणायाम के बारे में तो लगभग सभी जानते हैं कि यह मन की मलिनता को बहुत तेजी से नष्ट कर, मन में ईश्वरीय प्रकाश पैदा करता है, साथ ही साथ गोमुखासन भी बहुत ही रहस्यमय आसन है जिसके कई अनोखे और दुर्लभ फायदों के बारे में हम शीघ्र ही एक विस्तृत लेख अलग से प्रकाशित करेंगे पर यहाँ मुख्य बात जानने की यह है कि गोमुखासन के नियमित अभ्यास से निश्चित रूप से मन में स्थित सभी गन्दी भावनाओं की बहुत बढियां सफाई होती है, जिससे व्यक्ति मन का नहीं, बल्कि मन व्यक्ति का गुलाम होने लगता है (जिससे व्यक्ति उन बुरी चीजों और बुरी आदतों से एकदम दूरी बना लेता है जो उसके लिए नुकसानदायक है) |

गोमुखासन व अनुलोम विलोम प्राणायाम के नियमित अभ्यास से शरीर की अन्य सैकड़ों किस्म की जटिल बीमारियों में भी बहुत बढ़िया लाभ मिलते देखा गया है | गोमुखासन व अनुलोम विलोम प्राणायाम को प्रतिदिन कम से कम 15 मिनट से लेकर अधिकतम 3 घंटा 36 मिनट तक किया जा सकता है (गोमुखासन समेत अन्य हर तरह के योगासन व प्राणायाम को करने की विधि, लाभ व सावधानियां जानने के लिए, कृपया नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करें) !

गोमुखासन व अनुलोम विलोम प्राणायाम को नियमित करने के अलावा दूसरा काम है हनुमान जी के इस विशेष मन्त्र का नियमित जप करना, जिसका वर्णन श्री हनुमान चालीसा में दिया गया है (Hanuman mantra mentioned in Hanuman chalisa) –

“ जय जय जय हनुमान् गोसाई, कृपा करहुँ गुरु देव की नाई “

हर तरह की मानसिक कमजोरी, विकृति, दुर्गुण को दूर करने के लिए हनुमान जी के ऊपर दिए गए मन्त्र का कोई जवाब ही नहीं है | यह मन्त्र इतना जल्दी फायदा करता हैं कि कोई भी आदमी इसके प्रभाव को मात्र कुछ ही दिनों में करके निश्चित महसूस कर सकता है !

अगर किसी की हस्त मैथुन की आदत या स्वप्न दोष की बीमारी गंभीर अवस्था में पहुच गयी हो तो उसे इस मन्त्र को कम से कम 11 माला (अर्थात 1100 बार) जपना चाहिए और जिसे बीमारी की अभी शुरुआत हुई हो उसे सिर्फ 1 माला (अर्थात 100 बार) जपने से ही आराम मिलने लग सकता है !

इस मन्त्र में भगवान् हनुमान जी से यही प्रार्थना की गयी है कि कृपया, आप मुझ पर गुरु के समान कृपा करिए अर्थात मेरे गुरु बन जाईये | इस मन्त्र के निरंतर जप करने से, सही में बजरंग बली हनुमान जी, जप करने वाले मानव के ऊपर धीरे धीरे गुरु के समान कृपा करने लगतें हैं और इसमें तो कोई शक ही नहीं है कि जिसके गुरु स्वयं महा शक्तिशाली बजरंग बली खुद ही बन जाएँ तो वह धीरे धीरे शारीरिक रूप से कितना ज्यादा प्रचंड शक्तिशाली बलवान बन जाएगा !

चूंकि इस चमत्कारी मन्त्र को जपने और इसके पूर्ण विधि के बारे में हम विस्तार से लेख, कुछ महीने पूर्व प्रकाशित कर चुकें हैं, इसलिए इस मन्त्र से सम्बंधित जानकारी को पुनः हम यहाँ प्रकाशित नहीं कर रहें हैं लेकिन जिन भी सज्जन को उस मन्त्र से सम्बंधित सारी जानकारी चाहिए, उनके लिए हम इसी लेख के लिंक को नीचे दे रहें हैं (जिसका शीर्षक है – “झगड़ालू, बदतमीज स्वभाव बदलने और नशे की लत छुड़ाने का सबसे आसान तरीका”) जिस पर क्लिक करके उस लेख को पढ़ा जा सकता है !

हस्त मैथुन और स्वप्न दोष से पीड़ित किशोर और युवा धीरे धीरे मानसिक कुंठा के शिकार होतें जातें हैं जिससे वे डिप्रेशन में भी जा सकतें हैं अतः इस लेख को पढ़ने वाले सभी सज्जनों से अनुरोध है कि वे बिना किसी संकोच के इस लेख को सोशल मीडिया पर अधिक से अधिक शेयर करें ताकि आपके इस मानवता धर्म को निभाने से किसी पीड़ित युवा की नर्क हो चुकी जिंदगी फिर से नार्मल बना सकने, के महापुण्य के भागीदार आप भी बन सके | वैसे हमारे लेख जरूरतमंदों के पास बिना विशेष कठिनाई के पहुच पायें इसलिए हम लेखों के अंत में उससे सम्बंधित ‘सर्च की वर्ड्स’ भी पब्लिश करतें हैं, क्योंकि कई पाठकों ने हमसे कहा कि, काश हमें आपकी वेबसाइट के बारे में पहले ही पता चल गया होता तो हमें अपनी मतलब की सही जानकारी पाने के लिए इतने दिनों तक इधर उधर भटकना नहीं पड़ता !

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